आधुनिक समय में अनियमित जीवनशैली (आहार विहार) से उत्पन्न होने वाले रोगों में अर्श रोग (बवासीर) प्रमुख है, जो मुख्य रूप से मल मार्ग से संबंधित होता है। आयुर्वेद के ग्रंथों में इसका वर्णन सभी संहिताओं में मिलता है। विशेष रूप से, अष्टांग आयुर्वेद में शल्य तंत्र के जनक आचार्य सुश्रुत ने अर्श रोग का विस्तृत वर्णन किया है। आचार्य ने इस रोग को शत्रु के समान कष्ट देने वाला बताया है। अर्श रोग को गुदामांसाकुर और गुदकिलक के नाम से भी जाना जाता है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति में इसे पाइल्स या हेमोरॉयड्स कहा जाता है। अर्श रोग के कारण अर्श रोग के उत्पन्न होने के कई कारण होते हैं, जिनमें गरिष्ठ भोजन, बासी भोजन, अधिक मद्यपान, एक ही जगह पर ज्यादा बैठना, समय पर भोजन न करना, अपच होने पर भी भोजन करना, गर्भावस्था में होने वाले हार्मोनल परिवर्तन और आनुवांशिक कारण प्रमुख हैं। इसके अलावा, अधिक तला-भुना भोजन, मांसाहार, मसालेदार आहार, और मैदा तथा बेसन से बने उत्पाद भी इस रोग को बढ़ावा दे सकते हैं। अर्श रोग के लक्षण अर्श रोग के प्रमुख लक्षणों में गुदामार्ग में दर्द, मलत्याग में कठिनाई, कठिन मल के साथ रक्त आन...