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विश्व स्वास्थ्य दिवस 2025: "स्वस्थ शुरुआत, आशाजनक भविष्य"

प्रति वर्ष, दुनिया भर में 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन 7 अप्रैल 1948 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की स्थापना की याद में मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना के साथ ही विश्व स्वास्थ्य दिवस की नींव रखी गई थी, और तब से प्रतिवर्ष 7 अप्रैल को इसे मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना, स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में सुधार करना और वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों पर ध्यान आकर्षित करना है। इसके लिए हर साल एक नई थीम निर्धारित की जाती है। विश्व स्वास्थ्य दिवस 2025 की थीम है "स्वस्थ शुरुआत, आशाजनक भविष्य" (Healthy beginnings, Hopeful Futures)। यह थीम विशेष रूप से माता और नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य और सुरक्षा पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य गर्भावस्था, डिलीवरी, और पोस्टपार्टम (सूतिका) अवस्था के दौरान उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरतों पर जोर देना है, ताकि माता और नवजात मृत्यु दर (Maternal and Neonatal mortality) को कम किया जा सके। आयुर्वेद के अनुसार , गर्...

नीम का अद्भुत औषधि का प्रयोग: गुड़ीपड़वा पर्व से शुरुआत करके त्वचा रोगों को दूर करें - डॉ प्रकाश जोशी

गुड़ीपड़वा पर्व से नववर्ष की शुरुआत पर नीम के पत्तों का प्रयोग चर्म रोगों को दूर करने में सहायक सिद्ध हो सकता है। यह मान्यता चैत्र नवरात्रि के समय से प्रचलित है। आयुर्वेदाचार्यों ने अपनी संहिता ग्रंथों में यह उल्लेख किया है कि गुड़ीपड़वा पर्व पर 15 दिन तक नीम का प्रयोग काली मिर्च और मिश्री के साथ मिलाकर करने से वर्षभर त्वचा रोग उत्पन्न नहीं होते। नीम और पीपल: प्राकृतिक आक्सीजन के स्रोत नीम और पीपल ही ऐसे वृक्ष हैं जो 100% आक्सीजन इस संसार को प्रदान करते हैं। आयुर्वेद ग्रंथों में नीम को कई नामों से संबोधित किया गया है, जैसे अरिष्टक, पीचुमर्द, और हींगुनिर्यास। नीम के अद्भुत गुण: चर्म रोगों में लाभकारी नीम के अंदर जरा को रोकने की अद्भुत क्षमता पाई जाती है। इसमें कई तरह के एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जो चर्म रोगों और त्वचागत विकारों में लाभकारी सिद्ध होते हैं। गुड़ीपड़वा पर्व पर नीम का सेवन: गुड़ीपड़वा पर्व से लगातार 15 दिन तक नीम का 10 ग्राम मात्रा में, काली मिर्च और मिश्री (5-5 नग) के साथ प्रयोग करने से त्वचागत विकारों में लाभ मिलता है और यह चीरयुवा बनाए रखने में मदद करता है। त्वचा के स...

ग्रीष्म ऋतु में आहार-विहार

‘ऋतु' शब्द काल विभाग की ओर संकेत करता है। इसी आधार पर आचार्यो ने पूरे वर्ष को छः ऋतुओं के अंतर्गत समाहित किया है। आयुर्वेदाचार्यो ने इन ऋतुओं को दो भागों  में बाँटा है।विसर्गकाल वह समय है जिसमें वर्षा (जिसमें लगभग 15जुलाई-15सितंबर तक समय ) शरद ( जिसमें लगभग 15सितंबर-15नवंबर तक समय  ) तथा हेमन्त ( जिसमें लगभग 15नवंबर-15जनवरी तक समय  ) ऋतुऐं आतीं हैं। इस समय सूर्य की किरणें कम तेजी से पृथ्वी पर पड़ती हैं और चंद्रमा का प्रकाश अधिक होने के कारण आहार पाचन की शक्ति अच्छी होती है, जिससे शरीर का बल वर्षा ऋतु से हेमन्त की तरफ दिनों दिन बढ़ता जाता है। और हम सभी के कार्य करने की क्षमता में भी वृद्धि होती है तथा हमें जल्द ही थकान महसूस नहीं होती। इन ऋतुओं में होने वाले प्रभाव को हम इस सारणी के माध्यम से समझ सकते हैं - आदान काल में मुख्य रुप से जनवरी से जुलाई तक का समय होता है जिसमें शिशिर ( जिसमें लगभग 15जनवरी-15मार्च तक समय ) वसंत ( जिसमें लगभग 15मार्च-15मइ तक समय र्) तथा ग्रीष्म( जिसमें लगभग 15मई-15जुलाई तक समय ) ऋतुऐं आती हैं इस समय सूर्य का प्रकाश अधिक तेज होता है और सूर्य के प...

"स" शब्दों से सरोबार सप्तरंगीय मध्यप्रदेश बजट 2025 - प्रो. डॉ. धर्मेंद्र मेहता

प्रो. डॉ. धर्मेंद्र मेहता जी   समीक्षा : म.प्र. बजट 2025 माननीय मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव जी के नेतृत्व में सरकार के दूसरे बजट में म.प्र. के उपमुख्यमंत्री एवं वित्त मंत्री श्री जगदीश देवड़ा ने संस्कृत की सूक्तियों/सूत्रों से समारंभ करते हुए अपने सरल स्वभाव अनुरूप साहित्य के स शब्द का सर्वाधिक सदुपयोग करते हुए राज्य के बजट में सुगम परिवहन से सड़क, सिंचाई से स्वास्थ्य, सिंहस्थ से स्टेडियम, स्टार्टअप से सहकारी बैंकों तक, संग्रहालयों से स्मारकों तक, सोलर पार्क से स्वच्छ भारत मिशन, समृद्ध गांव से साहित्य विक्रय तक, और सफेद (श्वेत) क्रांति से संबल योजना तक के लिए 700 करोड़ रुपये तक की गहन संभावनाओं के संपोषणीय स्वरूप को बढ़ावा देने का सफल प्रयास किया है। बजट प्रस्तावों में बुनियादी ढांचे के लिए 70,515 करोड़ रुपये, स्वास्थ्य और महिला एवं बाल विकास के लिए 50,333 करोड़ रुपये, शिक्षा के लिए 44,826 करोड़ रुपये और कृषि के लिए 58,257 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। बजट में सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं के लिए करीब 2 ट्रिलियन रुपये अलग रखे गए हैं। कोई नया टैक्स भार नहीं लगाए गए हैं, महिलाओं, किस...

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर फिल्म समीक्षा : "मिसेज" और "दो पत्ती" : महिलाओं के उत्पीड़न पर एक नई दृष्टि

हिंसा के भेद: 'मिसेज' और 'दो पत्ती' फिल्म के संदेश ✍️ बबली चतुर्वेदी        अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एक ऐसा अवसर है, जब हम महिलाओं की स्थिति और उनके अधिकारों पर विचार करते हैं। यह दिन न केवल महिला सशक्तिकरण की बात करता है, बल्कि उनके संघर्षों और योगदानों को भी पहचानता है। 2025 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का विषय होगा “सभी महिलाओं और बालिकाओं के लिए : अधिकार, समानता, सशक्तिकरण।” पिछले कुछ वर्षों में, बॉलीवुड फिल्मों ने महिलाओं के मुद्दों पर खास ध्यान दिया है और उन पर आधारित कहानियां भी प्रस्तुत की हैं। ऐसी ही दो फिल्में हैं – "मिसेज" और "दो पत्ती", जो घरेलू हिंसा और महिला उत्पीड़न के मुद्दे को एक नए दृष्टिकोण से पेश करती हैं।  "मिसेज" – मानसिक उत्पीड़न भी हिंसा है "मिसेज" एक संवेदनशील और प्रभावी कहानी है, जो मानसिक उत्पीड़न के मुद्दे को बहुत प्रभावी ढंग से सामने लाती है। इस फिल्म की नायिका ऋचा (सान्या मल्होत्रा) एक ऐसे पारिवारिक माहौल में फंसी हुई हैं, जहां उसकी इच्छाओं और स्वतंत्रता को पूरी तरह से नकारा जाता है। उसकी सास, स...

लोक मान्य विक्रम संवत् ही राष्ट्रीय पंचांग हो - अजय बोकिल, वरिष्ठ लेखक

आजादी के बाद से ही यह बहस का विषय रहा है कि स्वतंत्र भारत का राष्ट्रीय पंचांग वो क्यों नहीं है, जो देश के अधिकांश हिस्से में लोकमान्य है। अर्थात् लोकमान्यता उस विक्रम संवत् की है, जिसे महाकाल की नगरी उज्जयिनी के प्रतापी हिंदू राजा विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांत शकों को हराने की स्मृति को शाश्वत करने के ई.पू. 57 में चलाया था। लेकिन भारत का आधिकारिक राष्ट्रीय पंचांग वो शक संवत् है, जो शक राजा रूद्रदमन ने 58 ईस्वी में भारतीयों पर विजय के उपलक्ष्य में चलाया जाता है। कहा जाता है कि शक संवत् के पक्ष में विद्वानों का पलडा सिर्फ इसलिए झुका, क्योंकि ऐतिहासिक प्रमाण शक संवत् के पक्ष में ज्यादा थे। संभव है कि संवतारंभ की तिथि के हिसाब से शक संवत् के पक्ष में ज्यादा प्रमाण हो, लेकिन इसी के साथ यह सवाल भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि प्रामाणिक होने के दावे के बाद भी शक संवत् जन पंचांग का हिस्सा क्यों नहीं बन पाया? आज भी हिंदुओं के सभी तीज त्यौहार, संस्कार व ज्योतिष गणनाएँ ज्यादातर विक्रम संवत् के हिसाब से ही होती हैं न कि शक संवत् के हिसाब से। इसका भावार्थ यही है कि आज भी लोक मान्यता विक्रम संवत् की ज्...

बेल वृक्ष : शिव से साधक तक - डॉ. मनीषा भारद्वाज

भारतीय ज्ञान परंपराओं को जानना और अपनाना युवाओं के लिए न केवल अपनी पहचान को समझने, बल्कि जीवन में संतुलन और शांति पाने का एक अद्वितीय तरीका है। इसी ज्ञान परम्परा में बेल पत्र का महत्व आता है  । बेलपत्र या बिल्व पत्र भगवान शिव को अर्पण करने की  सदियों से चली आ रही परंपरा न केवल आध्यात्मिक हैं, बल्कि प्रकृति के साथ गहरे संबंधों का भी संदेश देती है । इसके साथ ही बिल्व वृक्ष के धार्मिक, पौराणिक  ऐतिहासिक और वैज्ञानिक महत्व को भी इंगित करती है । बेल वृक्ष का इतिहास वैदिक काल से ज्ञात है और इसका उल्लेख  प्राचीन भारतीय ग्रंथों जैसे कि आयुर्वेद, चरक संहिता और सुश्रुत संहिता के अतिरिक्त प्राचीन बौद्ध और जैन साहित्य में भी मिलता है । बिल्व फल के छायाचित्र अजंता की गुफाओं में भी उकेरित हैं।हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय भगवान नीलकंठ ने इस धरा को विनाश से बचने के लिए हलाहल विष का पान किया । विष  की जलन और तपन को शांत करने के लिए देवताओं के द्वारा भगवान शिव को बेल के पत्ते अर्पण किए । उसी समय भगवान शिव ने प्रसन्न होकर बिल वृक्ष को आशीर्वाद देकर अपना प्रिय व...

बजट 2025-26 : वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन का भाषण

बजट 2025-26 वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन का भाषण 1 फरवरी, 2025 माननीय अध्यक्ष महोदय,        मैं वर्ष 2025-26 के लिए बजट प्रस्तुत करती हूँ। प्रस्तावना 1.      यह बजटः क)     विकास में तेजी लाने, ख)     समावेशी विकास सुनिश्चित करने, ग)     निजी क्षेत्र के निवेशों में नई जान डालने, घ)     परिवारों के मनोभावों में उल्लास भरने, और ङ)     भारत के बढ़ते मध्यम वर्ग की खर्च करने की शक्ति को बढ़ाने के लिए हमारी सरकार के प्रयासों को जारी रखेगा। 2.      हम सब मिलकर माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में और अधिक संपन्नता लाने और विश्व में अपना स्थान बनाने और अपने राष्ट्र की अनंत क्षमता को बढ़ाने के लिए अपनी यात्रा कर रहे हैं। 3.      आज जब हम 21वीं सदी के प्रथम चौथांश तक की यात्रा पूरी कर रहे हैं, हमारे सामने प्रतिकूल भू-राजनीतिक परिस्थितियां हैं, जो मध्यम अवधि में वैश्विक आर्थिक विकास मे...

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