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Showing posts with the label विशेष आलेख

अर्श दिवस: आयुर्वेद में बवासीर का उपचार

आधुनिक समय में अनियमित जीवनशैली (आहार विहार) से उत्पन्न होने वाले रोगों में अर्श रोग (बवासीर) प्रमुख है, जो मुख्य रूप से मल मार्ग से संबंधित होता है। आयुर्वेद के ग्रंथों में इसका वर्णन सभी संहिताओं में मिलता है। विशेष रूप से, अष्टांग आयुर्वेद में शल्य तंत्र के जनक आचार्य सुश्रुत ने अर्श रोग का विस्तृत वर्णन किया है। आचार्य ने इस रोग को शत्रु के समान कष्ट देने वाला बताया है। अर्श रोग को गुदामांसाकुर और गुदकिलक के नाम से भी जाना जाता है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति में इसे पाइल्स या हेमोरॉयड्स कहा जाता है।  अर्श रोग के कारण अर्श रोग के उत्पन्न होने के कई कारण होते हैं, जिनमें गरिष्ठ भोजन, बासी भोजन, अधिक मद्यपान, एक ही जगह पर ज्यादा बैठना, समय पर भोजन न करना, अपच होने पर भी भोजन करना, गर्भावस्था में होने वाले हार्मोनल परिवर्तन और आनुवांशिक कारण प्रमुख हैं। इसके अलावा, अधिक तला-भुना भोजन, मांसाहार, मसालेदार आहार, और मैदा तथा बेसन से बने उत्पाद भी इस रोग को बढ़ावा दे सकते हैं। अर्श रोग के लक्षण अर्श रोग के प्रमुख लक्षणों में गुदामार्ग में दर्द, मलत्याग में कठिनाई, कठिन मल के साथ रक्त आन...

उज्जयिनी के कालिदास और कालिदास की उज्जयिनी

नैसर्गिक सौन्दर्य, श्री और समृद्धि से सुसम्पन्न थी कालिदास युग की उज्जयिनी  ✍️ प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा भारत की सांस्कृतिक धारा के शिखर रचनाकार महाकवि कालिदास और इतिहास, धर्म संस्कृति की रंगस्थली, उज्जयिनी का गहरा संबंध है। कालिदास की चर्चा उज्जयिनी के बिना और उज्जयिनी की चर्चा कालिदास के बिना संभव नहीं है। महाकवि कालिदास मात्र सम्राट, विक्रमादित्य ही नहीं, सम्पूर्ण भारत की रत्न सभा के अद्वितीय रत्न कहे जा सकते हैं। वैसे उनके जन्म स्थान और काल के संबंध में पर्याप्त मतभेद रहा है, किन्तु यह एक सर्वस्वीकार्य तथ्य है कि उज्जयिनी के प्रति उनके, मन में गहरा अनुराग और अभिमान था। कालिदास की कृतियों के अन्तः और बाह्य साक्ष्य इस बात को प्रमाणित करते हैं कि यह नगरी उनकी दिव्य प्रेरणा भूमि और कर्मस्थली रही है। साथ ही इस बात के भी पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं कि महाकवि कालिदास का विक्रमादित्य के साथ स्नेह और साहचर्य का संबंध था। कालिदास के काल को लेकर पर्याप्त विमर्श हुआ है। इस संबंध में दो ही मत शेष है, पहले के अनुसार उनका समय पहली शताब्दी ईस्वी पूर्व था, जबकि दूसरा मत उनका काल चतुर्थ शताब्दी ईस...

तमसो मा ज्योतिर्गमय से छठ पूजा तक - मेधा बाजपेई

अगर कोई कहे की सबसे खूबसूरत, सूर्योदय या सूर्यास्त कहाँ का है। तो बहुत से उत्तर मिल जायेंगे और उसको प्रामाणिक करने के विचार भी। जगह का चुनाव मेरा नहीं होता है पर उस जगह को अलौकिक तरीके से महसूस करना उसे अद्वितीय बनाता है। सूर्योदय के साथ साथ, विज्ञान भी इस अद्वितीय प्रक्रिया के पीछे चित्रित है। सूर्योदय का कारण बचपन से पढ़तेआये हैं, पृथ्वी का तिरछा आकार, और गुरुत्वाकर्षण के कारण होता है। यह एक सूक्ष्म प्रक्रिया है जिसमें गुण, कारण, और परिणाम का सब हमें नए एक दिन की शुरुआत के साथ-साथ विज्ञान और साहित्य का सुंदर संगम प्रदान करता है, जिससे हम न केवल अपने पर्यावरण के साथ जुड़े रहते हैं बल्कि अपने अंतर मन की ऊर्जा को भी सकारात्मक रूप से बढ़ाते हैं। मैं हमेशा चमत्कृत होती हूँ ,उत्साहित होकर अचंभित जब भी इस प्राकृतिक घटना सूर्योदय और सूर्यास्त को देखती हूँ तो ऐसा लगता है पहली बार देख रही हूँ ।नित नये रूपों में और नये आयामों में देखना से मन कभी भरता ही नहीं है। सूर्योदय को हमेशा अवसर, आरंभ,आगाज ,उन्नति, सफलता आशा और प्रेरणा से जोड़कर देखा जाता रहा है पृथ्वी के उत्तर-पूर्वी हिस्से पर सूर्य क...

हर ईट है साक्षी और हर दीवार पर हैं किस्से - मेधा बाजपेई

थोड़ी देर तक हम सभी शून्य और हतप्रभ रह गये थे, अगले 2 घंटे तक हमारे दल ने किसी से कोई बात नहीं की, बात करने की स्थिति में ही नहीं थे । मैं बात कर रहीं हूं 'सेल्युलर जेल, अंडमान' की जो कभी ब्रिटिश उत्पीड़न का प्रतीक था और आज भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महाकाव्य को समर्पित एक राष्ट्रीय स्मारक है,जिसकी हर ईट है साक्षी और हर दीवाल पर  किस्से  हैं। एक राष्ट्रीय कार्यशाला में प्रो प्रमोद कुमार पुरोहित,प्रो सी सी त्रिपाठी और  श्रीमती वंदना त्रिपाठी  के साथ अंडमान  जाने और इस तीर्थ के दर्शन करने का अवसर मिला। डॉ सी सी त्रिपाठी और श्रीमती वंदना त्रिपाठी के साथ लगातार स्वतंत्रता सेनानियों  और वीर सावरकर के बारे में सुनते हुए इस कालापानी कहे जाने वाली जेल को देखा।  वीर सावरकर जी ने कालापानी में महाकाव्य ' कमला' और 'गोमांतक' की रचना की थी। उनकी काल कोठरी में जाना और उनको दण्डवत प्रणाम करना ऐसा लगा की कण मात्र ही अपने अपने हिस्से की थोड़ी सी देशभक्ति अर्पित की है। गाइड ने कहा की आंखों के आंसू और समुद का पानी,  वीरों की कहानियाँ  बहुत गहरी  होती...

वैश्विक स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान है आयुर्वेद

राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस आयुष मंत्रालय भारत सरकार वर्ष 2016 से हर वर्ष कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भगवान धन्वंतरि के अवतरण दिवस आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाता है। आयुर्वेद को आधुनिक समय में भी समान रूप से प्रासंगिक चिकित्सा की सबसे प्राचीन और अच्छी तरह से प्रलेखित प्रणाली के रूप में माना जाता है  प्रयोजनं चास्य स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणमातुरस्य विकारप्रशमनं च।। जिसमें रोगों की रोकथाम और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने दोनों पर उचित ध्यान दिया जाता है।  इस वर्ष नवम राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस 29 अक्टूबर 2024 को संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाएगा।  आयुर्वेद दिवस 2024 का विषय है” वैश्विक स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद नवाचार”। आयुर्वेद दिवस के उद्देश्य  १.वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियां जैसे गैर संक्रामक व्याधियों,एंटी माइक्रोबॉयल रेजिस्टेंस, मेंटल हेल्थ, न्यूट्रीशनल डिसऑर्डर जीवन शैली संबंधी रोग जैसे उच्च रक्तचाप, कैंसर ,हृदय रोग आदि वृद्धावस्था संबंधी विकार आदि का मुकाबला करना।  २. रोगों की रोकथाम और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना  3. सतत विकास ल...

भगवान धन्वन्तरि एवं आयुर्वेद दिवस का परिचय

भगवान धन्वन्तरि का अवतार आयुर्वेद रत्नाकर के प्रथम रत्न मंथन के संदेश के साथ हुआ, जो सतत गतिशीलता और सुनियोजन से लक्ष्य प्राप्ति के देवता हैं। यद्यपि वैद्यक शास्त्र के जन्मदाता के रूप में धन्वन्तरि जी का नाम जनसाधारण में प्रचलित है, इतिहास में धन्वन्तरि नाम के तीन आचार्यों का वर्णन मिलता है। सर्वप्रथम धन्वन्तरि, जो देवलोक में हैं, उसी प्रकार मृत्यु लोक में अमृत कलश लिए हुए आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वन्तरि प्रकट हुए। पुराणों में उल्लेख है कि क्षीरसागर के मंथन से अमृत कलश लिए हुए धन्वन्तरि उत्पन्न हुए। धन्वन्तरि समुद्र से निकले हुए 14 रत्नों में गिने जाते हैं, जिनमें श्री मणि, रंभा, वारुणी, अमिय, शंख, गजराज, कल्पद्रुम, शशि, धेनू, धनु, धन्वन्तरि, विष, वाजी देवता और असुर शामिल हैं। समुद्र मंथन का कार्य वासुकि नाग को रज्जू बनाकर और मंदराचल को मथनी बनाकर पूर्ण शक्ति के साथ किया गया। इसके फलस्वरूप धर्मात्मा आयुर्वेदमय पुरुष दंड और कमंडल के साथ प्रगट हुए। मंथन से पहले समुद्र में विभिन्न प्रकार की औषधियाँ डाली गई थीं, और उनके संयुक्त रसों का स्राव अमृत के रूप में निकला। फिर अमृत युक्त श्वेत कमंड...

महिमा एवं रुचिरा का सुयश

भोपाल, 15, अक्टूबर, 2024 । प्रभु कृपा और पित्रों के आशीर्वाद से हमारी छोटी बेटी महिमा साकल्ले ने विश्व की नंबर एक यूनिवर्सिटी (University of Oxford, UK) से फ़िज़िक्स में MS की डिग्री हासिल कर ली हैं, वह भी Distinction के साथ। इसके लिये महिमा को अलग से पुरस्कार भी मिला हैं। पिछले दिनों यूनिवर्सिटी में हुए एक गरिमामय समारोह में महिमा को MS की डिग्री प्रदान की गई।  महिमा साकल्ले हमारे परिवार से इस समारोह के साक्षी बनें महिमा की दीदी खुशबू स्लिवका एवं जीजाजी एलेक्स स्लिवका तथा बड़ी बहन रुचिरा साकल्ले। महिमा छुटपन से ही मेधावी हैं। भोपाल का Carmel Convent Girls Higher Secondary स्कूल हो अथवा पुणे का माना हुआ फर्गुसन कॉलेज । इन दोनों ही संस्थाओं में महिमा अपनी मेधा का लोहा पहले ही मनवा चुकी हैं। University of Oxford में भी महिमा ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया । यहाँ हमारी बड़ी बेटी रुचिरा का ज़िक्र करना भी लाज़िमी हैं, क्योंकि पिछले साल मध्यप्रदेश सरकार से विदेश अध्ययन के लिये स्कालर शिप प्राप्त कर वह विश्व की सर्वश्रेष्ठ यूनिवर्सिटी में से एक University of Edinburgh से MS कर चुकी हैं...

कबीर वाणी में रावण का अंत - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

रावणान्त : कबीर वाणी में प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा  इक लख पूत सवा लख नाती। तिह रावन घर दिया न बाती॥ - - - - - - - - - - - - - - - - लंका सा कोट समुद्र सी खाई। तिह रावन घर खबरि न पाई। क्या माँगै किछू थिरु न रहाई। देखत नयन चल्यो जग जाई॥ इक लख पूत सवा लख नाती। तिह रावन घर दिया न बाती॥ चंद सूर जाके तपत रसोई। बैसंतर जाके कपरे धोई॥ गुरुमति रामै नाम बसाई। अस्थिर रहै कतहू जाई॥ कहत कबीर सुनहु रे लोई राम नाम बिन मुकुति न होई॥ मैं (परमात्मा से दुनिया की) कौन सी चीज चाहूँ? कोई भी चीज सदा रहने वाली नहीं है; मेरी आँखों के सामने सारा जगत् चलता जा रहा है। जिस रावण का लंका जैसा किला था, और समुद्र जैसी (उस किले की रक्षा के लिए बनी हुई) खाई थी, उस रावण के घर का आज निशान नहीं मिलता। जिस रावण के एक लाख पुत्र और सवा लाख पौत्र (बताए जाते हैं), उसके महलों में कहीं दीया-बाती जलता ना रहा। (ये उस रावण का वर्णन है) जिसकी रसोई चंद्रमा और सूरज तैयार करते थे, जिसके कपड़े बैसंतर (वैश्वानर अग्नि) धोता था (भाव, जिस रावण के पुत्र - पौत्रों का भोजन पकाने के लिए दिन-रात रसोई तपती रहती थी और उनके कपड़े साफ करने के लि...

अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस : एक महत्वपूर्ण पहल

23 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस के रूप में घोषित किया। सांकेतिक भाषा के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए इस दिन को दुनिया भर में मनाया जाता है। 2018 में इससे पहले बार मनाया गया था। 23 सितंबर 1951 को विश्व बधिर संघ की स्थापना की गई थी, इसलिए इस दिन के महत्व को समझते हुए विश्व सांकेतिक भाषा दिवस भी इसी दिन मनाने का निश्चय किया गया। लगभग 72 मिलियन बधिर व्यक्ति दुनिया भर में हैं, जिसका आकलन विश्व बधिर संघ ने किया है। इनमें से लगभग 80% लोग विकासशील देशों में रहते हैं। सामूहिक रूप से, वे 300 से अधिक विभिन्न सांकेतिक भाषाओं का उपयोग करते हैं। सांकेतिक भाषाओं को किसी भी अन्य बोली जाने वाली भाषा के बराबर दर्जा दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, यह "बधिर समुदाय की भाषाई पहचान को बढ़ावा देता है।" इस दिन का महत्व इसलिए भी अधिक बढ़ जाता है क्योंकि यह बधिर समुदाय के अधिकारों को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषाएँ हमें बाकी दुनिया से अलग थलग पड़े बधिर समुदाय को आम जन से जोड़ने में सहायता कर...

ओजोन परत के क्षय को रोकने के लिए जरूरी है विश्व पटल पर सामूहिक प्रयास

विश्व ओजोन दिवस 16 सितंबर पर विशेष   ✍️ प्रो अखिलेश कुमार पांडेय, कुलगुरु, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जै न धरती को सूर्य की पराबैगनी किरणों से बचाने में ओजोन परत एक अहम भूमिका निभाती है। ओजोन परत पृथ्वी की सतह से लगभग 15 और 35 किमी (9 और 22 मील) के बीच स्थित होती है। यह ओजोन अणुओं (ओ3) की अपेक्षाकृत उच्च सांद्रता युक्त ऊपरी वायुमंडल का क्षेत्र है। वायुमंडल की लगभग 90 प्रतिशत ओजोन समताप मंडल में पायी जाती है। यह सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी (यूवी) विकिरण से पृथ्वी की रक्षा करती है। यूनाइटेड नेशन एनवायरमेंट प्रोग्राम (यू एन ई पी) के मुताबिक समय के साथ गुड ओजोन यानी स्ट्रैटोस्फेरिक ओजोन डैमेज हो रही है। यह परत पृथ्वी पर पड़ने वाली सूरज की हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों से सभी का बचाव करती है। ओजोन परत के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 16 सितंबर को वर्ल्ड ओजोन डे मनाया जाता है। इस साल विश्व ओजोन दिवस 2024 की थीम "मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल - जलवायु कार्रवाइयों को आगे बढ़ाना है। इसकी शुरुआत से ही ओजोन परत के संरक्षण के लिए मनाया जाने वाले इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस की एक थीम घोष...

जीवन के नायक और नियामक शिक्षकों से सम्भव है व्यक्तित्व का सम्पूर्ण परिवर्तन - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

शिक्षक दिवस विशेष  ✍️ प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, कुलानुशासक,  विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ज्ञानार्जन सही अर्थों में मानव व्यक्तित्व के निर्माण में और उसके उद्विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यही ज्ञान न केवल परिवार या समाज में प्रतिबिम्बित होता है, वरन् वह राष्ट्र और विश्व जीवन में भी प्रतिफलित होता है। आदर्श शिक्षक वही है जो मनुष्य को अंतर्बाह्य बंधनों से मुक्त करे। ऐसे शिक्षक जब जीवन में आते हैं तब हमारा सब कुछ बदल जाता है। ऐसे ही तीन गुरुवर सदैव मेरे स्मृति पटल पर  रहते हैं। प्रथम हैं भारतीय साहित्य एवं संस्कृति चिंतन के धुरीण विद्वान आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी, जिन्होंने मुझे विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला में पढ़ाया और शोध निर्देशन भी किया। दूसरे हैं दार्शनिक - काव्यशास्त्री आचार्य बच्चूलाल अवस्थी ज्ञान जिनसे कालिदास संस्कृत अकादमी के आचार्यकुल में ज्ञानार्जन किया। और तीसरे हैं नाट्य चिंतक और प्रयोक्ता आचार्य कमलेशदत्त त्रिपाठी, जो कालिदास अकादमी के दो बार निदेशक रहे। इन तीनों ने मेरे मन - मस्तिष्क में अपने ज्ञान के प्रसार के साथ वह दृष्टि विकस...

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