कविता कोमल कांत पदावली होती है। वह स्वतः स्फुरित होती है ,उसे बनाया नहीं जाता। इस आशय का प्रतिपादन कवयित्री, प्राध्यापक व शिक्षाविद डॉ.अंजना संधीर, अहमदाबाद, गुजरात ने किया। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के तत्वाधान में आयोजित राष्ट्रीय बहुभाषी काव्य गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में वे अपना उद्बोधन दे रही थी। डॉक्टर संधीर ने आगे कहा कि, कविता भावों से ओतप्रोत हो, तब ही मन की आंतरिक गहराइयों से झरने की तरह फूटती है और सुनने वाला उस में खो जाता है। कविता तलवार का भी काम करती है और मरहम का भी ।आज जिस दौर में हम जी रहे हैं, उसमें कविता, शायरी और साहित्य ही व्यक्ति को मानसिक शांति प्रदान करता है। कविता की यही परिभाषा है कि, वह मन से निकल कर मन तक पहुंचती है। कविता व्यक्ति को जिंदा रहने का हौसला देती है। विशेष अतिथि प्राचार्य ड .शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख ,पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि कविता एक आंतरिक घटना है ।भाव ही कविता आशय है। भाव और कल्पना के संयोग से कवि अपना कार्म निभाता है। कविता सामाजिक चेतना को सीधा संबोधित करती है।कविता का अपना अपरिभाषित विश्व है। कविता एक ऐसी इकाई है, जो पनपती और फैलत...